ख्वाहिशों की मौत-2
"हर पिता की तरह जो अपने बच्चों के भविष्य के लिए सब कुछ दाव लगाने के लिए तैयार होता है, कुछ इसी तरह उनके पिता भी जैसे अपना सर्वस्व अपने बच्चों पर लुटा देना चाहते थे"। "रेगिस्तान की रेतीली जमीन और वर्षा का भाव इन सब के बीच भला यह कैसे संभव होता है, फिर भी पिता जैसे ईश्वर के हाथों से लेखनी छीन अपने बच्चों का भविष्य खुद लिखने के लिए उतारू सा था। वह अपना संपूर्ण जीवन जैसे अपने बच्चों में बांट देना चाहता था"। "वही मां भी जैसे त्याग और सहनशीलता की मूर्ति से कोई कम नहीं। वह भी अपने पति का साथ कंधे से कंधा मिलाकर देती। सुबह उठकर घर, रसोई फिर पति के साथ उनके खेती के काम में सहयोग, तब पर भी ना जाने कहां से अपने बच्चों के लिए समय निकाल ही लेती"। उन्हें पढ़ने के लिए लगातार प्रोत्साहित करना और खेती के तरफ ना देखने की समझाइश उस समय लोगों की सोच से परे था..... "जहां एक ओर पिता अपने पुत्र को बराबरी में खेती दिखाने ले जाता। वहीं दिनेश जी के पिता उन्हें वक्त- वक्त पर जोधपुर, पुष्कर ,जयपुर ऐसी जगह पर राजाओं के महल और राजाओं के संघर्ष में जीवन को ले जाने दिखाते थे"। "जिसमें घुमा फिरा कर, वह हमेशा जोधपुर के एम.बी.एम कॉलेज को सदा ही एक विस्मय भरी निगाहों से देखते थे। उनका सपना था दिनेश आगे चलकर उसी महाविद्यालय से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर और समाज के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें"।
"वह हमेशा बच्चों को सबक सहयोग करने, कभी रिश्वत ना लेने और एक आदर्शवादी जीवन के साथ संघर्ष में डटे रहने की शिक्षा देते रहे, जिसमें एक वाक्य उनका अत्यंत प्रचलित था............. "जब बच्चा गिर जाए तो उसे खुद संभल कर उठना सीखने दे, अगर तुम उसे उठाकर सहानुभूति दिखाओगे तो वह कमजोर और दया का पात्र बनने में देरी नहीं करेगा।" बच्चे थे सोच समझ ना पाए, हमेशा अपने पिता को हिटलर समझते रहे। पिता के सपनों को साकार करने दिनेश ने इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त की, और उस समय की सबसे बड़ी कोल कंपनी जो कोल इंडिया लिमिटेड के नाम से जानी जाती थी, उसमें एक मैनेजमेंट ट्रेनिंग (M.T.) के रूप में सरकारी नौकरी हासिल की"।
"दिनेश की मां....दिनेश के पिताजी से बोली क्या हुआ??? तुम ऐसा काहे मुंह उतार बैठे हो, बेटा नौकरी लगा.... मिठाईयां बांटो या इतने से संतुष्ट नहीं हो। आप जो चाहते हैं वह बन जाएगा....... डी. जी.एम. एस. (डायरेक्टर जनरल ऑफ माइंस सेफ्टी)......... पर यह नौकरी भी तो कम नहीं.......... पूरा गांव खुशी मना रहा है, और यह महाशय है कि मुंह लटकाए बैठे हैं।दिनेश की मां बड़ बढ़ाए जा रही थी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि आज उनका बेटा सरकारी नौकरी वो भी जो पदाधिकारी बना है"। "उसने लोगों से कहते सुना जहां नौकरी लगी है। वहां उसे एक पक्का मकान, वह भी बड़े बरामदे वाला और दो नौकर और यहां तक कि एक रसोईया भी मिलेगा। उसे लाने और छोड़ने के लिए कमांडर जैसी बड़ी गाड़ी भी आएगी, जो उसके लिए किसी ख्वाब से कम न था"। "वह अपनी एक अलग ही दुनिया में खोई थी। कभी बेटे के अकेले जाने और बाहर रहने को लेकर रोने लगती तो, अगले ही पल उसकी तरक्की", उसकी नौकरी और सुख सुविधाओं के पुल बांधने लगती। उसकी ममता बच्चों को दूर नहीं करना चाहती.....तो बच्चों का भविष्य देख फुला ना समाती...... लेकिन वही पिता की चिंता ही और कुछ थी क्योंकि वह वास्तविक जीवन से परिचित था। वह जानता था कि जहां काम करने उनका बेटा जा रहा है, वहां सुख- सुविधाएं, बंगला, गाड़ी सब कुछ बच्चे को रिझाने के लिए खिलौना और मिठाई से कम नहीं है। वह कोयला खान की हालतो से अच्छी तरह से परिचित थे। वह जानता थे कि उनके सपनों का राजकुमार जहां काम करने जा रहा हो.....
वह होगा तो बड़े पद पर लेकिन उस मौत के कुएं से उसे अभी हर दिन गुजरना होगा। शायद इसलिए जहां एक और पूरा गांव जश्न मना रहा था वही वह लोगों के सामने खुश और अकेले में गुमसुम सा लग रहा था। वह चाहता था कि वह सरकारी अफसर बने, लेकिन ऐसा जो सिर्फ कागज और पेन तक ही सीमित हो...
क्रमशः ......
Gunjan Kamal
16-Nov-2023 08:39 PM
बेहतरीन
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